ख़त्म-ख़त्म है जूनून, तन बदन निढाल है निचुड़ी सी आत्मा को निगल रहा काल है।। ख़त्म-ख़त्म है जूनून, तन बदन निढाल है निचुड़ी सी आत्मा को निगल रहा काल है।।
दुश्वार हो गया...। दुश्वार हो गया...।
ज़माना ! ज़माना !
राहें मुश्किल जो न हों तो मंज़िल पाने का मज़ा कैसा आहिस्ता आहिस्ता ही सही मैं मुकाम तक पहुँच ही जाऊँग... राहें मुश्किल जो न हों तो मंज़िल पाने का मज़ा कैसा आहिस्ता आहिस्ता ही सही मैं मुक...
उसकी सुख शांति को बाँटने को उसके हर जुल्मों सितम में हिस्सेदार बनने को उसकी सुख शांति को बाँटने को उसके हर जुल्मों सितम में हिस्सेदार बनने को
कुछ ऐसा फंसे हैं हम इन रास्तों पर, ना ही तो चलना आ रहा है, और ना ही रुक सकते हैं... कुछ ऐसा फंसे हैं हम इन रास्तों पर, ना ही तो चलना आ रहा है, और ना ही रुक सकते हैं...